
डॉक्टर सत्येंद्र कुमार सिंह जी लखनऊ विश्व विद्यालय के बक्सी का तालाब स्थित चंद्र भानु गुप्त कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय में कीट विज्ञान के प्राध्यापक है। दैनिक सृजन के चीफ इडिटर के सी श्रीवास्तव एड0 से एक विशेष भेटवार्ता के दौरान आप ने उक्त जानकारी दी जो वाकई में काबिले तारीफ है, श्री सिंह के आये दिन समाचार पत्रों के साथ ही साथ इलेक्ट्रानिक चैनलों पर भी आप के जनोपयोगी जानकारियां प्रकाशित हाेती रहती है,दैनिक सृजन का भी प्रयास है कि श्री सिंह की जानकारियाें से आम जन केा लाभ पहुचाया जाय, आइए देखते है जानकारी के कुछ अंश।
दैनिक सृजन नेशनल न्यूज नेटवर्क वक्शी का तालाब ,लखनऊ ।
आलू तापक्रम के प्रति सचेतन प्रकृति वाला पौधा है, 20 डिग्री से 30 डिग्री सेंटीग्रेड दिन का तापक्रम आलू की वनस्पति वृद्धि और 15 से 20 सेंटीग्रेड आलू की कंदो की बढ़वार के लिए उपयुक्त होता है।
अगेती फसल की बुवाई मध्य सितंबर से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक किसान भाइयों को कर देनी चाहिए मुख्य फसल की बुवाई मध्य अक्टूबर के बाद हो जानी चाहिए जिससे अच्छा उत्पादन प्राप्त होगा। अगेती फसल के लिए कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी पुखराज, कुफरी सूर्या, कुफरी ख्याति, कुफरीबहार, कुफरी अशोका किस्म बहुत अच्छी मानी जाती हैं। आलू की खेती रबी के मौसम में की जाती है, समान रूप से अच्छी खेती के लिए फसल अवधि के दौरान दिन का कार्यक्रम 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा रात का तापमान 8 से 18डिग्री सेल्सियस होना चाहिए फसल में कंद बनते समय लगभग 18 से 20 डिग्री सेल्सियस ताप सर्वोत्तम होता है। कंद बनने के लिए पहले कुछ अधिक तापक्रम रहने पर फसल की वनस्पति वृद्धि होती है लेकिन कंद बनने के समय अधिक कार्यक्रम होने पर रुक जाती है, लगभग 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक का तापक्रम होने पर आलू की फसल में कंद बनना बिल्कुल बंद हो जाता है। जिन किसान भाइयों की को मुख्य फसल की बुवाई करनी वह भी अपने खेतों की तैयारी शुरू कर दें और मध्य अक्टूबर से आलू की बुवाई प्रारंभ कर देनी।मुख्य फसल हेतु कुफरी बहार ,कुफरी बादशाह, कुफरी आनंद, कुफरीसिंदूरी, कुफरी सतलज कुफरीलालिमा, कुफरी अरुण एवं कुफरी पुखराज अच्छी प्रजातियां हैं और इनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 350 से 450 कुंतल प्रति हेक्टेयर हो जाता है। जो किसान भाई प्रसंस्करण योग्य प्रजातियों की बुआई करना चाहते हैं उनके लिए चिप्सोना,- एक, चिप्सोना- तीन ,चिप्सोना- चार , कुफरी फ्राईसोना और कुफरी सूर्या अच्छी किस्में हैं, इनकी उपज 400 से 450 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।।आलू उत्पादन हेतु प्रमुख रूप से खाद्य उर्वरक का अधिक महत्व होता है सामान्य तौर पर 140 किलोग्राम नत्रजन 80 किलोग्राम फास्फोरस तथा 100 किलोग्राम पोटाश की संस्तुति की जाती है, मृदा विश्लेषण के आधार पर यह मात्रा घट बढ़ सकती है। अगेती फसल की बुवाई हेतु अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए जिससे उत्पादन अच्छा होगा। किसान भाइयों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जब अगेती फसल की बुवाई कर रहे हो तो दीमक के बचाओ पूर्व में ही तैयारी कर लेना चाहिए इसके लिए क्लोरो पायरीफास नामक कीटनाशक को 1 लीटर पानी में एक एम एल दवा का प्रयोग करते हुए आलू के कंदो को बुवाई से पहले उपचारित कर ले , इससे आलू में दीमक का प्रकोप नहीं होगा। समय से बुवाई करने पर आलू में अगेती झुलसा का भी प्रकोप कम होता है।