|| वासन्तिक गीत रचना ||
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मौसम ये… मोहे सदा~आया जो ऋतुराज है।
लिपटी लता पेंड़ से-गीत नया छेड़ दे—वासन्ती सुर साज़ है।।
मखमल सी क्यारियाँ-सरसों के बूटे-धरती की चूनर धानी हरी,
बौरे रसाल वन-बाग और बगीचे-मधुकर तितलियाँ मुद मधु भरी,
मस्त बहारों में~हसीं नज़ारों मे~सुरभित दिशायें मादक हवा–
फूलों से शोभे छटा~रंगीन रसराज है—
जीना तो है कला-हार नहीं “हौसला”~दौर यह दगाबाज है ।।
~डॉक्टर हौसिला प्रसाद द्विवेदी,’हौसला’